नहीं है अश्क से ये ख़ून-ए-नाब आँखों में भरा है रंग से तेरे शहाब आँखों में कहाँ निकल सके आँसू नज़र को जाए नहीं रखा हूँ शक्ल को तेरी मैं दाब आँखों में उलूही किस की तजल्ली से हो गया हूँ दो-चार झमक रहा है सदा माहताब आँखों में हुए हैं जब से वो कैफ़-ए-निगह के आइना-दार बजाए अश्क भरी है शराब आँखों में अमल से अपनी ज़बाँ किस तरह न हो बे-कार जहाँ हो रस्म सवाल-ओ-जवाब आँखों में हुआ हूँ जब से मैं इतलाक़ उस के से आगाह जहाँ मैं देखूँ है वाँ बू-तुराब आँखों में