नहीं जो तेरी ख़ुशी लब पे क्यूँ हँसी आए यही बहुत है कि आँखों में कुछ नमी आए अँधेरी रात में कासा-ब-दस्त बैठा हूँ नहीं ये आस कि आँखों में रौशनी आए मिले वो हम से मगर जैसे ग़ैर मिलते हैं वो आए दिल में मगर जैसे अजनबी आए ख़ुद अपने हाल पे रोती रही है ये दुनिया हमारे हाल पे दुनिया को क्यूँ हँसी आए न जाने कितने ज़मानों से हम बहकते हैं फ़क़ीह बहके तो कुछ लुत्फ़-ए-मय-कशी आए सलीब-ओ-दार के क़िस्से बहुत पुराने हैं सलीब-ओ-दार तो हमराह-ए-ज़िंदगी आए हरी न हो न सही शाख़-ए-नख़्ल ग़म की 'अरीब' हमारे गिर्या-ए-पैहम में क्यूँ कमी आए