नहीं कटता है ये मैदान-ए-बला वादी-ए-ख़िज़्र बयाबान-ए-बला मुस्तइद ज़ुल्फ़ मिरी रंज पे है है मुहय्या सर-ओ-सामान-ए-बला मर गया गेसू-ए-पुर-पेच में दिल छुट गया क़ैदी-ए-ज़िंदान-ए-बला हार फूलों की हैं चोटी में अयाँ क्या ही फूला है गुलिस्तान-ए-बला बोले बिखरा के वो ज़ुल्फ़ें अपनी हम हुए सिलसिला-जुम्बान-ए-बला ऊँची चोटी है ग़ज़ब ऐ यम-ए-हुस्न क्या ही उट्ठा है ये तूफ़ान-ए-बला कान की लौ तिरी ज़ुल्फ़ों में नहीं है चराग़-ए-तह-ए-दामान-ए-बला गर्मी-ए-रुख़ से अरक़-रेज़ है ज़ुल्फ़ है गुहर-बार ये नैसान-ए-बला दिल मिरे सीने में है महव-ए-मिज़ा है यही शेर-ए-नियस्तान-ए-बला