पेश-ए-आशिक़ चश्म-ए-गिर्यान-ओ-लब-ए-खंदाँ है एक जल गया जो नख़्ल उस को बर्क़ और बाराँ है एक देखने देता नहीं उस को हिजाब-ए-इश्क़ हाए हूँ मैं वो महरूम जिस को वस्ल और हिज्राँ है एक ना-तवानी से तिरे बीमार के रुख़्सार पर सैली-ए-दस्त-ए-सितम और साया-ए-मिज़्गाँ है एक पैरहन में यूँ बदन है जिस तरह से तन में रूह चश्म-ए-बद दूर अब लताफ़त में वो जिस्म-ओ-जाँ है एक माह से तश्बीह फिर तुझ को न क्यूँ कर दीजिए चाँदनी और साया तेरा ऐ मह-ए-ताबाँ है एक आप से बेहतर की आगे ख़ुद-नुमाई है ज़ुबूँ रू-ब-रू-ए-मेहर माह-ओ-अब्र-ए-बे-बाराँ है एक चाहिए हँस कर छिड़कना ऐ लब-ए-जानाँ नमक आतिश-ए-ग़म से कबाब और ये दिल-ए-सोज़ाँ है एक आशिक़ों के आगे मुशरिक ऐ बुत-ए-यकता हूँ मैं गर कहूँ मैं हुस्न में तू और मह-ए-कनआँ है एक सैकड़ों तूती-ज़बाँ हैं याँ असीर-ए-दाम-ए-ग़म ख़ाना-ए-सय्याद और ये गुम्बद-ए-गर्दां है एक एक ही ये नूर है दिल में हर इक के जल्वा-गर शीशे हैं लाखों परी सब में वले पिन्हाँ है एक