नहीं कि मैं था मिरे ध्यान में नहीं आया कुछ इतना पास था पहचान में नहीं आया वफ़ा न तार-ए-गरेबाँ ने की नज़र की तरह निकल गया तो गरेबान में नहीं आया छुपा छुपा सा फिरा दर्द मुस्कुराहट में जो साथ थे उन्हें पहचान में नहीं आया हज़ार बार तसव्वुर के शहर से गुज़रा वो एक शे'र जो दीवान में नहीं आया हम 'अश्क' ढूँडते फिरते थे क्या यही चेहरा कि मिल गया है तो पहचान में नहीं आया