फिर तिरे क़ौल-ओ-क़सम याद आए तिरी चाहत के सितम याद आए किस क़दर चोट लगी है दिल पर जब भी मर मर के सनम याद आए याद जब आया तिरा नाम मुझे कितने बे-नाम से ग़म याद आए जाने वो कैसा सफ़र था मेरा जिस का इक एक क़दम याद आए फिर मिरा ज़ेहन है उलझा उलझा फिर तिरी ज़ुल्फ़ के ख़म याद आए और भी याद की लौ तेज़ हुई जब भी चाहा कि वो कम याद आए कौन 'बेताब' पुकारे हम को किस को तन्हाई में हम याद आए