नहीं मंज़ूर तप-ए-हिज्र का रुस्वा होना तेरे बीमार का अच्छा नहीं अच्छा होना नासेहा वुसअत-ए-काशाना जुनूँ-ख़ेज़ नहीं वर्ना क्या फ़र्ज़ है आवारा-ए-सहरा होना बस अब ऐ ज़ब्त ज़ियादा मुझे महजूब न कर है मिरी आँख की तक़दीर में दरिया होना किस से खुलते हैं तिरी ज़ुल्फ़-ए-गिरह-गीर के बल कोई आसान है ये उक़्दा-ए-दिल वा होना निगह-ए-नाज़ को आसाँ दम-ए-ख़ंजर बनना लब-ए-जाँ-बख़्श को दुश्वार मसीहा होना हाए बातों में तिरी लग़्ज़िश-ए-मस्ताना-ए-नाज़ हाए आँखों में तिरी नश्शा-ए-सहबा होना हमा-तन दाग़-ए-ग़म-ए-इश्क़-ए-बुताँ हूँ 'फ़ानी' दिल से भाता है मुझे नक़्श-ए-सुवैदा होना