था मुझ से हम-कलाम मगर देखने में था जाने वो किस ख़याल में था किस समय में था कैसे मकाँ उजाड़ हुआ किस से पूछते चूल्हे में रौशनी थी न पानी घड़े में था ता-सुब्ह बर्ग-ओ-शाख़-ओ-शजर झूमते रहे कल शब बला का सोज़ हवा के गले में था नींदों में फिर रहा हूँ उसे ढूँढता हुआ शामिल जो एक ख़्वाब मिरे रत-जगे में था