नहीं वसवास जी गँवाने के हाए रे ज़ौक़ दिल लगाने के मेरे तग़ईर-ए-हाल पर मत जा इत्तिफ़ाक़ात हैं ज़माने के दम-ए-आख़िर ही क्या न आना था और भी वक़्त थे बहाने के इस कुदूरत को हम समझते हैं ढब हैं ये ख़ाक में मिलाने के बस हैं दो बर्ग-ए-गुल क़फ़स में सबा नहीं भूके हम आब-ओ-दाने के मरने पर बैठे हैं सुनो साहब बंदे हैं अपने जी चलाने के अब गरेबाँ कहाँ कि ऐ नासेह चढ़ गया हाथ उस दिवाने के चश्म-ए-नजम सिपहर झपके है सदक़े उस अँखड़ियाँ लड़ाने के दिल-ओ-दीं होश-ओ-सब्र सब ही गए आगे आगे तुम्हारे आने के कब तू सोता था घर मरे आ कर जागे ताला ग़रीब-ख़ाने के मिज़ा-ए-अबरू-निगह से इस की 'मीर' कुश्ता हैं अपने दिल लगाने के तीर-ओ-तलवार-ओ-सैल यकजा हैं सारे अस्बाब मार जाने के