नहीं ये अक्स हुआ है समझता क्यूँ नहीं मैं मिरे क़रीब खड़ा है समझता क्यूँ नहीं मैं ये चीज़ और नहीं कोई मेरा साया है मगर ये मुझ से जुदा है समझता क्यूँ नहीं मैं ये कोई पहलू मिरा है जो ज़ात से मेरी कई दिनों से जुदा है समझता क्यूँ नहीं मैं जहाँ पे जिस्म की दीवार में शिगाफ़ पड़ा वहीं से सब्ज़ा उगा है समझता क्यूँ नहीं मैं तुम्हारी आँख से मैं अपने ख़्वाब देखता हूँ यही तो मेरी सज़ा है समझता क्यूँ नहीं मैं फिसलती रेत पे फ़िहरिस्त-ए-ख़्वाब लिखनी है ये इम्तिहान कड़ा है समझता क्यूँ नहीं मैं धुआँ हूँ पूछता हूँ वो गया है शो'ले पर कि शो'ला उस पे गया है समझता क्यूँ नहीं मैं तुम अपने-आप से क्यूँ इख़्तिलाफ़ करते हो 'शफ़क़' मोआ'मला क्या है समझता क्यूँ नहीं मैं