नई बारिश की रिम-झिम में लिबास-ए-ग़म तो बदलेगा वही रस्म-ए-चमन होगी मगर मौसम तो बदलेगा वो क़हर-ए-शाह-ख़ावर हो कि ज़हर-ए-बाद-ए-सरसर हो किसी सूरत मिज़ाज-ए-नाज़ुक-ए-शबनम तो बदलेगा मसीहाओं ने कुछ ताज़ा दवाएँ ला के रक्खी हैं नए ज़ख़्म आएँगे अब भी मगर मरहम तो बदलेगा कफ़न रेशम के मक़्तूलों को अब पहनाए जाएँगे अज़ादारों का तर्ज़-ए-गिर्या-ओ-मातम तो बदलेगा नई साक़ी-गरी का जश्न-ए-फ़य्याज़ी मुबारक हो वही होंगे अयाग़-ओ-जाम लेकिन सम तो बदलेगा नई नावक-ज़नी होगी मगर इतना भी किया कम है कि जिस आलम में हम रहते हैं वो आलम तो बदलेगा