नई दुनिया नए मंज़र नए अफ़्कार मिले सब शजर नक़्ल-ए-मकानी के समर-बार मिले बाद-ए-हिजरत तो हमें ले के जहाँ आई है उन गली-कूचों में इंसानों के शहकार मिले ख़ूबसूरत से किसी बार के इक गोशे में दिल की तन्हाई मिटाने को कई यार मिले कहीं खो जाने का दुख एक हक़ीक़त ही सही अपनी पहचान के भी नित-नए आसार मिले कब तलक सर पे विरासत की रिदा ले के चलें क्यों न अब हम को कोई साया-ए-दीवार मिले