ये ज़र्द फूल ये काग़ज़ पे हर्फ़ गीले से तुम्हारी याद भी आई हज़ार हीले से बदन का लम्स हवा को बना गया ख़ुश्बू नज़र के सेहर से मंज़र हुए नशीले से ये ज़िंदगी भी फ़क़त रेत का समुंदर है कभी निगाह जो डालो फ़ना के टीले से ये शाइरी मुझे 'शहबाज़' यूँ भी प्यारी है कि मेरा ख़ुद से तअ'ल्लुक़ है इस वसीले से