नज़दीक सी शय साया-ए-हाइल से बहुत दूर मंज़िल है शनासाई-ए-मंज़िल से बहुत दूर दुश्वार सही दूर नहीं नुक्ता-रसी से लेकिन है ग़लत-रस्मी-ए-राहिल से बहुत दूर ये ऐन ख़ुदी इश्क़ के आसार में है ग़म पहलू से है कम दूर मुक़ाबिल से बहुत दूर हर सहल-तलब से तो है बरगश्ता-बदीहा हर साइल-ए-कामिल के भी हासिल से बहुत दूर क़ुर्बानियाँ कुछ रख दे गिरो ऐसी उठे गूँज गिर-पड़ के जो पहुँचे कोई मुश्किल से बहुत दूर तारी असर-ए-सदमा कभी नश्शा-ए-तुंदी ख़ुद-संजी-ए-हक़-सीरत-ए-ज़ाइल से बहुत दूर मश्शातगी-ए-शाना बहुत सिलसिला-ए-जुम्बा तह-दारी-ए-सद-ज़ुल्फ़-ए-अवाइल से बहुत दूर इक सिलसिला-ए-मौजा-ए-ज़ंजीर-ए-शिकन सा घुसते हुए ज़िंदाँ से सलासिल से बहुत दूर ग़ल्तीदा-ओ-पेचीदा-ओ-आशुफ़्ता सी इक मौज साहिल को लिए ज़द में है साहिल से बहुत दूर सद-ज़ाविया मेहराब-ए-तग़य्युर कम-ओ-अफ़्ज़ूँ इदराक के बाज़ू-ए-हमाइल से बहुत दूर यूँ जैसे कि हर अस्र-ए-रवाँ के मुतवाज़ी मौसम की हर इक शक़ के मुमासिल से बहुत दूर पिन्हाँ अभी कम-पोश भी मुबहम अभी हर बार पायाबी-ए-मिज़राब रग-ए-दिल से बहुत दूर लाहूत की इक लहर सू-ए-कर्ब-ए-दिल-ए-ख़ाक लाया कोई जज़्बा किसी महफ़िल से बहुत दूर आशोब-ए-क़दह जस्ता सू-ए-गश्त पियादा वामाँदगी-ए-तिश्ना-ओ-सर-जोशी-ए-बादा