नाज़-ओ-अदा है तुझ से दिल-आराम के लिए ये जामा क़त्अ है तिरे अंदाम के लिए वहशत में काबे को जो गया कू-ए-यार से लत्ते जुनूँ ने जामा-ए-एहराम के लिए आशिक़ हूँ हर तरह से गुनहगार हूँ तिरा हाजत क़ुसूर की नहीं इल्ज़ाम के लिए क्या क्या जपेगी कैसा रटेगी ज़बाँ उसे तस्बीह हम ने ली है तिरे नाम के लिए तिफ़्ली के गिर्ये का ये खुला हाल वक़्त-ए-मर्ग आग़ाज़ ही में रोते थे अंजाम के लिए अच्छा नहीं मुक़ाबला उस चश्म-ए-शोख़ से इक दिन शिकस्त-ए-फ़ाश है बादाम के लिए वो नौनिहाल आए इलाही मुराद पर हासिल हो पुख़्तगी समर-ए-ख़ाम के लिए हर-चंद अपना नामा-ए-इस्याँ सियाह हो होगा सफ़ेद सुब्ह है हर शाम के लिए नामर्द और मर्द में इतना ही फ़र्क़ है वो नान के लिए मरे ये नाम के लिए मिस्ल-ए-कमंद अपनी रसाई हुइ अगर ऐ क़स्र-ए-यार बोसे लब-ए-बाम के लिए क्या चश्म-ए-मस्त-ए-यार से तश्बीह दीजिए कैफ़िय्यत-ए-निगाह नहीं जाम के लिए रखवा के ज़ुल्फ़ें यार ने लाखों ही मुर्ग़-ए-दिल पैदा किए हैं कश्मकश-ए-दाम के लिए दिल में सिवाए यार जगह हो न ग़ैर की ख़ल्वत सरा-ए-ख़ास नहीं आम के लिए जाता है बहर-ए-ग़ुस्ल जो ऐ ख़ुश-दिमाग़ तू जलता है ऊद गर्मी-ए-हम्माम के लिए 'आतिश' जो चाहे पाए तवक्कुल के महकमे जो सुब्ह को मिले न रहे शाम के लिए