नज़र चुरा गए इज़हार-ए-मुद्दआ से मिरे तमाम लफ़्ज़ जो लगते थे आश्ना से मिरे रफ़ीक़ो राह के ख़म सुब्ह कुछ हैं शाम कुछ और मिलेगी तुम को न मंज़िल नुक़ूश-ए-पा से मिरे लगी है चश्म-ए-ज़माना अगरचे वो दामन बहुत है दूर अभी दस्त-ए-ना-रसा से मिरे यहीं कहीं वो हक़ीक़त न क्यूँ तलाश करूँ जिसे गुरेज़ है औहाम-ए-मा-वरा से मिरे किसी पे मिन्नत-ए-बेजा नहीं कि सच ये है सँवर गए दिल ओ जाँ शेवा-ए-वफ़ा से मिरे गिराँ हैं कान पे उन के वही सुख़न जो अभी अदा हुए भी नहीं नुत्क़-ए-बे-नवा से मिरे खुला चमन न हवा में फिर ऐ नक़ीब-ए-बहार अभी तो ज़ख़्म हरे हैं तिरी दुआ से मिरे नशात ओ रंग के ख़ूगर मुझे मुआफ़ रखें छलक पड़े जो लहू साज़-ए-ख़ुश-नवा से मिरे