नज़र का नश्शा बदन का ख़ुमार टूट गया कि अब वो आईना-ए-ए'तिबार टूट गया बताएँ क्या तुम्हें अब लम्हा-ए-क़रार की बात ज़रा सी देर को चमका शरार टूट गया कोई ख़याल है साए की तरह साथ मिरे अकेले-पन का भी मेरे हिसार टूट गया शिकस्त खाई न मैं ने फ़रेब दुनिया से दिल इस नबर्द में गो बार बार टूट गया उठो कि और कोई रिश्ता उस्तुवार करें जिसे था टूटना 'तारिक़' वो तार टूट गया