नज़र में अर्श-ए-बरीं है किसी को क्या मालूम कहाँ ये ख़ाक-नशीं है किसी को क्या मालूम तमाम हेच है दुनिया अलाएक़-ए-दुनिया जो नक़्श ज़ेब-ए-जबीं है किसी को क्या मालूम तुम्हें ख़बर ही नहीं क्या है विर्सा-ए-दरवेश जहान-ए-ज़ेर-ए-नगीं है किसी को क्या मालूम बिला सबब तो ये लर्ज़िश हुआ नहीं करती जो आग ज़ेर-ए-ज़मीं है किसी को क्या मालूम न दर खुला न दरीचे कभी खुले देखे मकाँ में कौन मकीं है किसी को क्या मालूम वो एक लफ़्ज़ जो उतरा न ज़ीना-ए-लब से हमें उसी का यक़ीं है किसी को क्या मालूम पयाम्बर की ज़रूरत न शरह-ए-दिल का ख़याल वो किस का बला ज़हीं है किसी को क्या मालूम