नज़र में रंग लहू में सुरूर भरता जा गुज़रने वाले मिरे दिल से भी गुज़रता जा इक एक लाश पे रुक कर दरूद पढ़ दिल से जनाज़ा-गाह-ए-मोहब्बत पे बैन करता जा ये रुत पलट के न आएगी बाग़-ए-हस्ती में सिमट रही है वो ख़ुशबू सो तू बिखरता जा गुल-ए-ख़याल को महका मगर कोई लम्हे किसी कली में उदासी का रंग भरता जा विसाल-ओ-हिज्र में ख़ुश रह हर एक हालत से मोहब्बतों में हमेशा कमाल करता जा कहीं तुझे भी फ़ना राएगाँ न कर डाले तू इस से पहले मिरी ज़िंदगी में बरता जा गुज़र रहा है शब-ए-इंतिज़ार से 'जावेद' किसी मुंडेर पे ताज़ा चराग़ धरता जा