नज़र में सुल्ह भी सर पर लहू भी देखता है मुझे तो रश्क से मेरा अदू भी देखता है मैं शोरिशों में भी दिल को क़रीब रखता हूँ यही तो है जो पस-ए-हाव-हू भी देखता है चराग़ उन्हीं की विसातत से जल रहा है मगर कभी हवाओं को ये तुंद-ख़ू भी देखता है मुझे ये मोती समुंदर यूँ ही नहीं देता वो मेरे हौसले भी जुस्तुजू भी देखता है ये दिल असीर तिरे नक़्श-ए-पा का है लेकिन जो चूक जाए तो फिर चार-सू भी देखता है मिरे जुनून को दोनों अज़ीज़ हैं जानाँ ये दश्त-ओ-दर ही नहीं आबजू भी देखता है हज़ार बर्ग-ओ-समर जम्अ' हो गए 'अरशद' मगर ये दिल कि मआल-ए-नुमू भी देखता है