नज़र मिली तो नज़ारों में बाँट दी मैं ने ये रौशनी भी सितारों में बाँट दी मैं ने बस एक शाम बची थी तुम्हारे हिस्से की मगर वो शाम भी यारों में बाँट दी मैं ने जनाब क़र्ज़ चुकाया है यूँ अनासिर का कि ज़िंदगी इन्ही चारों में बाँट दी मैं ने पुकारते थे बराबर मुझे सफ़र के लिए मताअ-ए-ख़्वाब सवारों में बाँट दी मैं ने हवा मिज़ाज था करता भी क्या समुंदर का इक एक लहर किनारों में बाँट दी मैं ने