नज़र नज़र में लिए तेरा प्यार फिरते हैं मिसाल-ए-मौज-ए-नसीम-ए-बहार फिरते हैं तिरे दयार से ज़र्रों ने रौशनी पाई तिरे दयार में हम सोगवार फिरते हैं ये हादिसा भी अजब है कि तेरे दीवाने लगाए दिल से ग़म-ए-रोज़गार फिरते हैं लिए हुए हैं दो आलम का दर्द सीने में तिरी गली में जो दीवाना-वार फिरते हैं बहार आ के चली भी गई मगर 'जालिब' अभी निगाह में वो लाला-ज़ार फिरते हैं