उस ने आहिस्ता से जब पुकारा मुझे झुक के तकने लगा हर सितारा मुझे तेरा ग़म इस फ़िशार-ए-शब-ओ-रोज़ में होने देता नहीं बे-सहारा मुझे हर सितारे की बुझती हुई रौशनी मेरे होने का है इस्तिआरा मुझे ऐ ख़ुदा कोई ऐसा भी है मोजज़ा जो कि मुझ पर करे आश्कारा मुझे कोई सूरज नहीं कोई तारा नहीं तू ने किस झुटपुटे में उतारा मुझे अक्स-ए-इमरोज़ में नक़्श-ए-दीरोज़ में इक इशारा तुझे इक इशारा मुझे हैं अज़ल ता अबद टूटते आईने आगही ने कहाँ ला के मारा मुझे