नज़र नज़र से मिलाना कोई मज़ाक़ नहीं मिला के आँख चुराना कोई मज़ाक़ नहीं पहाड़ काट तो सकता है तेशा-ए-फ़रहाद पहाड़ सर पे उठाना कोई मज़ाक़ नहीं उड़ानें भरते रहें लाख ताइरान-ए-ख़याल सितारे तोड़ के लाना कोई मज़ाक़ नहीं लहू लहू है जिगर दाग़ दाग़ है सीना ये दो दिलों का फ़साना कोई मज़ाक़ नहीं हवाएँ आज भी आवारा ओ परेशाँ हैं महक गुलों की उड़ाना कोई मज़ाक़ नहीं हज़ारों करवटें लेते हैं आसमान ओ ज़मीं गिरे हुओं को उठाना कोई मज़ाक़ नहीं ये और बात बुलाएँ न अपनी महफ़िल में मगर 'ज़िया' को भुलाना कोई मज़ाक़ नहीं