रग-ए-एहसास में नश्तर टूटा हाथ से छूट के साग़र टूटा टूटना था दिल-ए-नाज़ुक को न पूछ कब कहाँ किस लिए क्यूँ-कर टूटा सीना धरती का लरज़ उट्ठा है आसमाँ से कोई अख़्तर टूटा झुक गया पा-ए-बुताँ पर लेकिन पत्थरों से न मिरा सर टूटा सख़्त-जानी मिरी तौबा तौबा क़त्ल करते थे कि ख़ंजर टूटा अश्क पलकों से गिरा यूँ जैसे ख़ुश्क टहनी से गुल-ए-तर टूटा ऐ 'ज़िया' हो के रिहा ज़िंदाँ से उड़ने पाया भी न था पर टूटा