नज़र ने काम किया दिल के तर्जुमाँ की तरह निगाहें कह गई सब हाल-ए-दिल ज़बाँ की तरह किए थे बे-ख़ुदी-ए-शौक़ में जहाँ सज्दे वही ज़मीं नज़र आती है आसमाँ की तरह नज़र मिली है तो पहचान जाए अहल-ए-चमन दिखाई देते हैं गुलचीं भी बाग़बाँ की तरह किताब-ए-ज़ीस्त का शीराज़ा-बंद कोई नहीं बिखर गई है किसी नज़्म-ए-बोस्ताँ की तरह न बर्ग-ओ-बार न शादाबियाँ न ग़ुंचा-ओ-गुल यही बहार अगर है तो है ख़िज़ाँ की तरह तुम्हारे शहर में मुद्दत से ये तमन्ना है दिखाई दे कोई बे-मेहर मेहरबाँ की तरह ख़ुदा-गवाह कि इक उम्र का असासा है न क्यूँ अज़ीज़ रखूँ इल्म-ओ-फ़न को जाँ की तरह किसे बताएँ कि थे हम भी हम-नशीं ऐ 'सैफ़' वो 'ताज' भूल गए याद-ए-रफ़्तगाँ की तरह