नज़र पे बैठ गया जो ग़ुबार किस का था दिलों से कम न हुआ जो शरार किस का था न कोई शक्ल थी दिल में न लब पे नाम कोई तमाम उम्र मुझे इंतिज़ार किस का था मिरे लिए तो वो ठहरा न एक पल-भर को न जाने क़ाफ़िला-ए-नौ-बहार किस का था ये किस के हुस्न से यादों की बन गई तस्वीर दिल-आइने पे सुनहरा ग़ुबार किस का था पड़े रहेंगे इसी सोच में क़यामत तक हमारे बा'द दिल-ए-बे-क़रार किस का था ख़याल-ओ-ख़्वाब की रातों से जो उभरता है वो एक नूर बदन का निखार किस का था वो अध-खुला सा दरीचा वो चाह की ख़ुशबू मिरा नहीं था तो फिर इंतिज़ार किस का था ये किस ने शोर-ए-सलासिल को नग़्मगी दे ही रह-ए-वफ़ा में क़दम बार बार किस का था तुम्हारे जब्र की ताईद था मिरा मंशा समझ में आ न सका इख़्तियार किस का था ये किस लिए सू-ए-गुल भी निगाह जाती थी तुम आ चुके थे तो फिर इंतिज़ार किस का था मिरी वफ़ा का बगूला तो एक था लेकिन मिरे सिवा सर-ए-सहरा ग़ुबार किस का था बहुत दिनों से यही इक सवाल है दिल में जो मैं ने सब को दिया था वो प्यार किस का था 'मुनीर' जब भी चले कोई रास्ता न मिला वजूद-ए-राहगुज़र ए'तिबार किस का था