नज़ारा करूँ कैसे तिरी जल्वागरी का पर्दा अभी हाइल है मिरी बे-बसरी का उस्लूब नया रास नहीं चारागरी का बीमार पे आलम है वही बे-ख़बरी का चसका उसे उफ़ पड़ ही गया दर-ब-दरी का क्या कीजिए इंसाँ की इस आशुफ़्ता-सरी का ये राह-ए-मोहब्बत है ये काँटों से भरी है मक़्दूर नहीं सब को मिरी हम-सफ़री का हमदम न उड़ा जामा-ए-अख़्लाक़ की धज्जी दीवानों को होता है जुनूँ जामा-दरी का देखा है कि खुलते नहीं दिल अहल-ए-दुवल के भरता नहीं मुँह कासा-ए-दरयूज़ा-गरी का