नक़्क़ाद अपने आप का बे-लाग ऐसा कौन है होना मिरा इक वहम है देखूँ ये कहता कौन है वो आफ़्ताब-ए-हुस्न है जल्वे लुटाए जाएगा उस को अब इस से क्या ग़रज़ मुश्ताक़ कितना कौन है वहदत है ये भी दीदनी मैं हूँ नज़र वो रौशनी गो ये गिरह खुलती नहीं आईना किस का कौन है मैं अपने गुम्बद का मकीं साया सा देखा डर गया अब क्या बिताऊँ क्या सुना जब मैं ने पूछा कौन है बस इक हवा का फेर है वो भी हवा हो जाएगा मैं सोचता रह जाऊँगा मुझ में ये मुझ सा कौन है मेरी नज़र जिस पर पड़ी इक राबतों का ढेर था फिर वो जो अपने आप को कहता है तन्हा कौन है अब फ़िक्र इस की कीजिए दुनिया रहेगी या नहीं अब इस को जाने दीजिए दुनिया में कैसा कौन है तह की लगन इक ढोंग है बस तैरना आता नहीं तह करने वाला सतह को ये शख़्स होता कौन है ये बज़्म-ए-दानिश है 'मुहिब' तस्वीर-ए-नफ़्स-ए-मुतमइन इस बज़्म में चून-ओ-चरा शाएर की सुनता कौन है