नाकाम वलवलों को लिए भागते रहे हम सर पे दलदलों को लिए भागते रहे नादीदा मंज़िलों की तरफ़ हम तमाम उम्र हाजत के क़ाफ़िलों को लिए भागते रहे वो ख़ौफ़ था कि दर्द का एहसास ही न था तलवों में आबलों को लिए भागते रहे फ़ुर्सत कहाँ थी दफ़्न करें मय्यतों को हम बस मुर्दा हौसलों को लिए भागते रहे छोड़ा नहीं उन्हें उन्हें हल भी नहीं किया हम सिर्फ़ मसअलों को लिए भागते रहे पहले तमाम शहरों को जंगल सिफ़त किया फिर सर पे जंगलों को लिए भागते रहे