मुझ में से रफ़्ता रफ़्ता घटाता रहा मुझे वो थोड़ा थोड़ा रोज़ चुराता रहा मुझे मेरे परों में मेरी ज़मीं बाँधने के बा'द वो अपनी कहकशाँ में बुलाता रहा मुझे हर रात आँसुओं से भिगोया मिरा बदन हर सुब्ह धूप दे के सुखाता रहा मुझे सिगरेट पीता मैं भी लबों से लगा रहा वो भी धुआँ बना के उड़ाता रहा मुझे उस को थी धुन कि मुझ को बनाएगा वो गुलाब काँटों के बीच रोज़ सजाता रहा मुझे पानी की तरह मैं भी था मुफ़्त उस के हाथ में और वो भी बे-दरेग़ बहाता रहा मुझे उस को ही मैं ने डस लिया इक रोज़ आख़िरश जो अपनी आस्तीं में छुपाता रहा मुझे उस के नमक से था मिरा पैकर बना हुआ बारिश से इस लिए वो बचाता रहा मुझे