नाकामियों पे सर-ब-गरेबाँ नहीं हूँ मैं जो उठ के बैठ जाए वो तूफ़ाँ नहीं हूँ मैं क्या ख़ाक-ए-दिल की आग जो शो'ला न दे सके जज़्बात-ए-मुश्तइ'ल से पशेमाँ नहीं हूँ मैं हो मुझ से आदमी की ख़ुशामद ख़ुदा की शान जिस का हो ये शिआ'र वो इंसाँ नहीं हूँ मैं मेरी शगुफ़्तगी का भी आएगा एक वक़्त महके न जो कभी वो गुलिस्ताँ नहीं हूँ मैं कट कट के गिर रहा है 'मुनव्वर' जिगर मिरा बज़्म-ए-सुख़न में आज ग़ज़ल-ख़्वाँ नहीं हूँ मैं