नए मकाँ में अक़ीदे की कोई जा ही नहीं ख़ुदा तो है प कहीं बंदा-ए-ख़ुदा ही नहीं भरोसा यूँ तो बहुत था मगर दुआ के लिए जो हाथ हम ने उठाया तो वो उठा ही नहीं हर एक शख़्स यहाँ अपने-आप में गुम है किसी से हाथ मिलाने का फ़ाएदा ही नहीं लहू-लुहान है जो भी उधर से आया है मगर ये मैं कि जो उस राह तक गया ही नहीं दयार-ए-ख़्वाब है आओ यहीं क़याम करें यहाँ से यूँ भी निकलने का रास्ता ही नहीं