नक़्श आँखों में उतारा जाएगा फिर सफ़र में दिन गुज़ारा जाएगा पहले दाख़िल होगा शब के शहर में फिर सवेरे को पुकारा जाएगा जब उमीदें ख़त्म सब हो जाएँगी वक़्त फिर कैसे गुज़ारा जाएगा हार किरनों का बना कर झील के आइने में दिन सँवारा जाएगा देख ले गर इक नज़र सूरज इसे कोहरा ये बे-मौत मारा जाएगा थाम कर रख तिनका वर्ना एक दिन हाथ से ये भी सहारा जाएगा जब भटक जाएगा सहरा में बहुत तब समुंदर को पुकारा जाएगा बेबसी में डूबी नज़रों से फ़लक अब क़फ़स से बस निहारा जाएगा