नक़्श तकमील तक पहुँचता है अक्स बस आप का उभरता है अब मोहब्बत की और हद क्या हो मेरी बेटी में तू उभरता है मेरी साँसों में है तिरी ख़ुश्बू मेरी मेहंदी में तू ही रचता है दूर हो कर भी मुझ से दूर नहीं मेरी साँसों में तू महकता है एक बस्ती जलाई थी उस ने अब के हाकिम है क्या वो करता है वो जो इल्म-ओ-अदब में बौने हैं उन का सिक्का सुख़न में चलता है दिल की मिज़राब पर 'रबाब' अब के देखिए साज़ क्या निकलता है