नख़चीर हूँ मैं कश्मकश-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र का हक़ मुझ से अदा हो न दर-ओ-बस्त-ए-हुनर का मग़रिब मुझे खींचे है तो रोके मुझे मशरिक़ धोबी का वो कुत्ता हूँ कि जो घाट न घर का दबता हूँ किसी से न दबाता हूँ किसी को क़ाएल हूँ मुसावात-ए-बनी-नौ-ए-बशर का हर चीज़ की होती है कोई आख़िरी हद भी क्या कोई बिगाड़ेगा किसी ख़ाक-बसर का दिल-गीर तो बे-शक हूँ पे नौमीद नहीं हूँ रौशन है दिल-ए-शब में दिया नूर-ए-सहर का पोशीदा नहीं मुझ से कोई जज़्र-ओ-मद-ए-शौक़ महरम हूँ सदा दिलबर-ए-अंगेख़्ता-बर का ज़िंदाँ ओ सलासिल से सदाक़त नहीं दबती है शान-ए-कई सिलसिला बस रक़्स-ए-शरर का तस्वीर कोई बनती दिखाई नहीं देती किया सर्फ़ा अबस हम ने किया ख़ून-ए-जिगर का क्या शुग़्ल-ए-शजर कार है अफ़्कार से बेहतर सौदा सर-ए-शोरीदा में गर हो न समर का क्यूँ सर-ख़ुश-ए-रफ़्तार न हो हो क़ाफ़िला-ए-मौज रहज़न का है अंदेशा न ग़म ज़ाद-ए-सफ़र का डाली है सितारों पे कमंद अहल-ए-ज़मीं ने ज़ोहरा का वो अफ़्सूँ न फ़साना वो क़मर का हर बात है 'ख़ालिद' की ज़माने से निराली बाशिंदा है शायद किसी दुनिया-ए-दिगर का