नख़वत-ए-हुस्न पसंद आई है दीवाने को सर-कशी शम्अ' की मंज़ूर है परवाने को देखिए कौन सी जा यार का मिलता है पता कोई का'बे को चला है कोई बुत-ख़ाने को तेरी फ़ुर्क़त में तसव्वुर है ये बेदर्दी का ख़्वाब हम जानते हैं नींद के आ जाने को काम आ जाती है हम-बज़्मी भी रौशन दिल की शम्अ' हम-रंग बना लेती है परवाने को गुल पे बुलबुल था कहीं शम्अ' पे परवाना था हम ने हर रंग में देखा तिरे दीवाने को वा-शुद-ए-दिल न हुई ग़ुंचा-ए-ख़ातिर न खिला कौन से बाग़ में आए थे हवा खाने को मैं ने जब वादी-ए-ग़ुर्बत में क़दम रक्खा था दूर तक याद-ए-वतन आई थी समझाने को