वा'दे का ए'तिबार तो है वाक़ई मुझे ये और बात है कि हँसी आ गई मुझे लाई है किस मक़ाम पे वारफ़्तगी मुझे महसूस हो रही है अब अपनी कमी मुझे समझे हैं वो जुनूँ तो जुनूँ ही सही मुझे दानिस्ता अब बदलनी पड़ी ज़िंदगी मुझे जल्वों की रौशनी में जो खोया था पा गया तुम से नज़र मिली तो मोहब्बत मिली मुझे माहौल साज़गार-ए-मिज़ाज-ए-वफ़ा न था दुनिया से बच के उन की नज़र देखती मुझे यूँ रब्त-ओ-ज़ब्त-ए-शौक़ बढ़ाया ब-तर्ज़-ए-नौ जैसे कि पहले उन से मोहब्बत न थी मुझे 'नख़शब' मिटाया जिस ने वफ़ाओं की आड़ में उस बेवफ़ा से फिर भी मोहब्बत रही मुझे