नाला-ए-दिल में मिरे अब वो असर हो कि न हो क्या पता उन को मिरे ग़म की ख़बर हो कि न हो हैं फ़रोज़ाँ मिरे दिल में तिरी यादों के चराग़ ग़म नहीं कोई शब-ए-ग़म की सहर हो कि न हो रक़्स तो कर लूँ ज़रा मौज-ए-सबा की गत पर फिर गुलिस्ताँ में बहारों का गुज़र हो कि न हो अब भी वाबस्ता है दिल से मिरे उम्मीद-ए-करम लग़्ज़िशों पर मिरी रहमत की नज़र हो कि न हो हम भी मुश्ताक़ हैं लुत्फ़-ए-निगह-ए-जानाँ के देखिए चश्म-ए-करम उन की इधर हो कि न हो बात आफ़िय्यत-ए-साहिल की तो कर लूँ कुछ देर बहर-ए-आलाम की मौजों से मफ़र हो कि न हो कर लो तज़ईन-ए-ग़ज़ल दिल के लहू से 'नासिर' ताज़ा इस तरह से फिर ज़ख़्म-ए-जिगर हो कि न हो