नाला-ए-शब का असर देखेंगे शम्अ' को वक़्त-ए-सहर देखेंगे आँख उठा कर वो जिधर देखेंगे मेरा ही हुस्न-ए-नज़र देखेंगे हम-सफ़र देखते रह जाएँगे जब मिरा अज़्म-ए-सफ़र देखेंगे जब भी गुज़रेंगे तिरे शहर से हम संग देखेंगे न सर देखेंगे शहर का शहर उमँड आया है आप किस किस का जिगर देखेंगे लोग फेंकेंगे मुसलसल पत्थर जिस शजर में भी समर देखेंगे अपना अंदाज़ा-ए-क़ामत होगा लोग जब ज़ख़्म-ए-हुनर देखेंगे