ज़िंदगी दुश्वार थी दुश्वार है कितनी यकसाँ वक़्त की रफ़्तार है आइना ख़ुद आइना-बरदार है ये हमारा चेहरा-ए-किरदार है ज़िंदगी आज़ार ही आज़ार है फिर भी हम को ज़िंदगी से प्यार है वक़्त का रुख़ मोड़ सकता है वही वक़्त से जो बरसर-ए-पैकार है जाने कितने झेले बैठा है अज़ाब ये शजर जो आज साया-दार है गुल्सिताँ में क्या नशेमन का शुमार जब कि गुल ही शाख़-ए-गुल पर बार है कब तलक पास-ए-ज़बाँ-बंदी 'मजीद' ज़िंदगी लब-तिश्ना-ए-गुफ़्तार है