नाला-ए-जाँ-गुदाज़ ने मारा सोज़-ए-उल्फ़त के साज़ ने मारा ये कहा पढ़ के मेरा नामा-ए-शौक़ उस सरापा नियाज़ ने मारा मुँह से उफ़ भी तो कर नहीं सकते ख़ौफ़-ए-इफ़शा-ए-राज़ ने मारा ज़िंदगी चैन से गुज़रती थी चश्म-ए-नज़्ज़ारा-बाज़ ने मारा दाद भी शौक़-ए-दीद की न मिली जल्वा-ए-बे-नियाज़ ने मारा मौत की ज़द से बच गया जो कोई उस को उम्र-ए-दराज़ ने मारा उँगलियाँ हर तरफ़ से उठती हैं तुर्रा-ए-इम्तियाज़ ने मारा कोई दम-साज़ कोई है जाँ-बाज़ आप के साज़-बाज़ ने मारा जिस के क़ब्ज़े में है मसीहाई हम को इस तेग़-ए-नाज़ ने मारा क्या भरोसा किसी पे हो ऐ 'जोश' दिल को इक दिल-नवाज़ ने मारा