नामा-बर भी वहाँ रसा न हुआ किसी सूरत मिरा भला न हुआ दर्द की दाद कौन दे मुझ को तू ही जब दर्द-आश्ना न हुआ वही मतलूब हो वही तालिब इक मुअम्मा हुआ ख़ुदा न हुआ मुख़्तसर भी है और जामे भी क्या हुआ का जवाब क्या न हुआ हाँ कहो कुछ हमें भी हो मालूम वो गिला क्या जो बरमला न हुआ इश्क़ उस दर्द का नहीं क़ाइल जो मुसीबत की इंतिहा न हुआ तुम से तकमील-ए-जौर हो न सकी इस अदा का भी हक़ अदा न हुआ इतना पास-ए-वफ़ा तो है उस को बेवफ़ाई से बे-वफ़ा न हुआ दिल-कुशा थी निगाह-ए-नाज़ उस की तीर क्यूँ उस का दिल-कुशा न हुआ दिल कभी ख़ुश हुआ तो था लेकिन इस का अब ज़िक्र क्या हुआ न हुआ क़ाबिल-ए-शुक्र है वो सब्र ऐ 'जोश' जो कभी दस्त-ए-इल्तिजा न हुआ