नाले मिरे जब तक मिरे काम आते रहेंगे ऐ ज़ौक़-ए-नज़र वो लब-ए-बाम आते रहेंगे ऐ ज़ौक़-ए-तलब तू जो सलामत है तो क्या ग़म लब तक मिरे ख़ुद जाम पे जाम आते रहेंगे दिल ज़िंदा अगर हो तो फिर ऐ ज़ीस्त के तालिब हर गाम पे जीने के पयाम आते रहेंगे मंज़िल की तमन्ना है तो ठुकरा के निकल जा सय्याद लिए दाना-ओ-दाम आते रहेंगे खा जाओ न धोका कहीं मंज़िल के गुमाँ पर रस्ते में कुछ ऐसे भी मक़ाम आते रहेंगे 'अख़्तर' अगर आबाद रहे गुल-कदा-ए-दिल! फिर इस में तो कुछ मस्त ख़िराम आते रहेंगे