दीदा-ओ-दानिस्ता धोका खा गए हम फ़रेब-ए-ज़िंदगी में आ गए जब हुजूम-ए-शौक़ से घबरा गए खो गए ख़ुद और तुम को पा गए चैन भी लेने नहीं देते मुझे मैं अभी भूला था फिर याद आ गए मैं कहाँ जाऊँ नज़र को क्या करूँ आप तो सारी फ़ज़ा पर छा गए दिल ही दिल में उफ़ वो दर्द-ए-ना-गहाँ आँखों ही आँखों में कुछ समझा गए रुख़ से आँचल भी न सरका था अभी नीची नज़रें हो गईं शर्मा गए उफ़ ये ग़ुंचों का तबस्सुम ये बहार हैफ़ अगर ये ग़ुंचे कल मुरझा गए जिस क़दर ग़ुंचे खिले थे नौ-ब-नौ मेरी आँखों से लहू बरसा गए पूछते क्या हो इन अश्कों का सबब वाक़िआत-ए-रफ़्ता फिर याद आ गए अब तो शोर अपना फ़साना ख़त्म कर उन की आँखों में भी आँसू आ गए