नालों से मेरे कब तह-ओ-बाला जहाँ नहीं कब आसमाँ ज़मीन-ओ-ज़मीं आसमाँ नहीं क़ातिल की चश्म-ए-तर न हो ये ज़ब्त-ए-आह देख जूँ शम्अ' सर कटे पे उठा याँ धुआँ नहीं ऐ बुलबुलान-ए-शो'ला-दम इक नाला और भी गुम-कर्दा-राह-ए-बाग़ हूँ याद आशियाँ नहीं इस बज़्म में नहीं कोई आगाह वर्ना कब वाँ ख़ंदा ज़ेर-ए-लब उधर अश्क-ए-निहाँ नहीं ऐ दिल तमाम नफ़अ' है सौदा-ए-इश्क़ में इक जान का ज़ियाँ है सो ऐसा ज़ियाँ नहीं नाज़-ओ-निगह रविश सभी लागू हैं जान के है कौन अदा वो तेरी कि जो जाँ-सिताँ नहीं मिलना तिरा ये ग़ैर से हो बहर-ए-मस्लहत हम को तो सादगी से तिरी ये गुमाँ नहीं आज़ुर्दा तक भी कुछ न है उस के रू-ब-रू माना कि आप सा कोई जादू-बयाँ नहीं