नम हैं वो आँखें बुरा हो इश्क़ की तासीर का दूसरा रुख़ कितना दर्द-अंगेज़ है तस्वीर का वो मुजस्सम हुस्न-ओ-तम्कीं दिल सरापा दर्द-ओ-ग़म जैसे 'सौदा' के क़साएद और तग़ज़्ज़ुल 'मीर' का हिन्द के लाला-रुख़ो अज़ रू-ए-ता'मीर-ए-वतन रंग हर ख़ित्ते को दे दो जन्नत-ए-कश्मीर का शौक़ की आँखें हैं अक्कास-ए-बहार-ए-हुस्न-ए-दोस्त दिल सदा बंद-ए-ग़िना-ए-लहन है तक़रीर का तेरे ख़त में बिल-मुशाफ़ा हम-कलामी के मज़े तर्ज़ है मक्तूब-ए-ग़ालिब में यही तहरीर का इद्दआ-ए-ख़ुद-शनासी है सरासर बे-महल मुख़्तलिफ़ चेहरा हो जब हर दौर की तस्वीर का 'मानी' फ़न में शख़्सियत होती है हर फ़नकार की शाइ'री पर्दा उठाती है मिरी तस्वीर का