नामूस-ए-वफ़ा का पास रहा शिकवा भी ज़बाँ तक ला न सके अंदर से तो रोए टूट के हम पर एक भी अश्क बहा न सके साहिल तो नज़र आया लेकिन तूफ़ाँ में बला की शिद्दत थी मौजों को मनाया लाख मगर हम जानिब साहिल आ न सके हम कहते कहते हार गए और दुनिया ने कुछ भी न सुना जब दुनिया ने इसरार किया हम अपना दर्द सुना न सके कब हम ने गुलिस्ताँ चाहा था कब हम ने बहारें माँगीं थीं इक गुल की तमन्ना थी हम को वो भी तो चमन में पा न सके