तमअ' का दौर है हातिम अता कर नजफ़ के शाह सा हाकिम अता कर ज़मीं पर ग़ासिबों की है हुकूमत ज़मीं को मूसी-ए-'काज़िम' अता कर तिरी धरती पे तेरा अद्ल चाहें निज़ाम-ए-अद्ल का नाज़िम अता कर जो भूखों को खिलाए नर्म रोटी हमें मौला वही हाशिम अता कर मिले शाइ'र को राज़-ए-कुन-फ़कूनी अली के इल्म का राक़िम अता कर जो काटे मर्हब-ओ-अंतर के सर को उसी कर्रार सा जासिम अता कर तुझे ख़ुश आए तेरी ला-मकानी मुझे मेरा पता लाज़िम अता कर हर इक नौ-शाह को 'नक़्क़ाश' के रब शुऊ'र-ए-हज़रत-ए-'क़ासिम' अता कर