घर की तसल्लियों में जवाज़-ए-हुनर तो है इन जंगलों में रात का झूटा सफ़र तो है जिस के लिए हवाओं से मुँह पोंछती है नींद इस जुरअत-ए-हिसाब में ख़्वाबों का डर तो है खुलती हैं आसमाँ में समुंदर की खिड़कियाँ बे-दीन रास्तों पे कहीं अपना घर तो है रौशन कोई चराग़ मज़ार-ए-हवा पे हो पलकों पे आज रात ग़ुबार-ए-सहर तो है